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Father’s Day | फादर्स डे | जब मे पिता बना

Father’s Day | फादर्स डे | जब मे पिता बना

बचपन निकला पिता से डरते डरते,
बड़े हुए पर उन्हीं के दम से,
आता कभी कभी गुस्सा था मुझे,
पर समझ नही पाया था उन्हे|

जब भी कुछ माँगा उनसे,
चुप रह सब सुनते थे वो,
सोचता था ये आशा है अधूरी,
पर अगले ही छण होती पूरी|

जैसे जैसे बड़े हुए,
पिता कम समझ आने लगे,
नही समझा कभी मन उनका,
कैसे दो ड्रेस से काम चलता उनका|

नयी ड्रेस हमेशा मुझे दिलाते,
मैं क्या करूँगा बस यही बताते,
शायद नही शोक उन्हे,
यही समझ आगे बढ़ते जाते|

शादी हुई, पिता बना,
कैसे छोटी सी माँग,
ख़ुशी से मन भर देती,
यह समझ आने लगा था|

जब मे पिता बना,
पापा का त्याग समझ गया था,
उनकी खुशी मेरी हँसी थी,
यह समझ गया था|

उनका मुझे खुश रखना,
मेरी आशा पूरी करना,
दो ड्रेस मे जीवन निकालना,
सब समझ आ रहा था|

पैसे हो ना हो,
मुझे खुश रखना,
मुझे आगे बढ़ाने के लिए,
हर कोशिश करना,

समझ गया मे भी,
उनका त्याग और प्यार,
जब मे पिता बना,
बच्चों से बड़ा नहीं संसार|

दोस्तो यह कोई कविता नही, मेरे विचार है जो सहसा ही मन मे आए और मैने यहाँ लिख डाले|

हर बच्चे के लिए उनका पिता ही हीरो होता है| अपने पिता के त्याग और प्यार को समझे और उन्हे इज़्ज़त और प्यार दे|

आशा करता हूँ, आपको यह पसंद आया होगा| क्रप्या करके इसे शेयर और लाइक करें|

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